108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनि महाराज के चरणों में बारम्बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु -अभिषेक जैन स-परिवार
सच्चे मुनि धर्म का जिसने
सदा स्वयं मैं पालन किया
सयंम रूपी देशना का पुनः
भारत में प्रतिपादन किया
निर्मोही जीवन जिये कैसे
क्या स्वमिलन का सन्मार्ग है
आत्मा-परमात्मा का शुभ
क्या परम वीतराग विज्ञान है
आपकी आभा में शुभ ज्ञानमय
सारी रश्मियाँ, सर को झुकाके
विनयवत, चरणों में पा जाती
स्वयं की लघुता का वोध है
मोक्ष पथ पर अविकल आप
लेकिन स्वयंमय रहते सदा
संसार की सारी ही निधियाँ
सन्शय मात्र डिला पाती कदा
आप जैसा दिगम्बर मुनि
पूरे भारत वर्ष की शान है,
अभिमान है, प्राण है, विश्व
में भारतीयता की पहचान है
मैं राग-द्वेषी संसार में भटका
प्रभु आपके गुणों का कैसें सही
वर्णन करुँ, लघु बुद्धि की सीमा
से बंधा, भक्तिवश वन्दन करुँ
वस आपसा कुछ बन सकूँ
गुरु चरण में बस मेरी यह
प्रार्थना, मनोरथ सब पूर्ण
होगें मन में अटल ये भावना ।।
सादर नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु
-अभिषेक जैन स-परिवार