108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनि महाराज -अभिषेक जैन स-परिवार
के चरण कमलों में बारंबार नमोस्तु...नमोस्तु...नमोस्तु...
तेजोमय अटल मूर्ती हो
आरधाना, तप, त्याग की
चिर-सत्य के दिगउद्गोषकर्ता
प्रणेता अहिंसामयि विश्वधर्म के
आप शिवमय, पूर्ण सुखमय
परम शांति हो निज-आत्म की
आप जिन हो, जिनागम हो
जैनत्व का शुभ सार हो
वीतरागी वीर की, महावीर की
शुभ वाणी का सुलभ संसार हो
प्राणी धर्म की नित देशणा के
तुम स्वयं आलम्ब हो, आरम्भ हो
प्रारब्ध हो,अवलम्ब हो,आलम्ब हो
तुम चिर प्रेम हो, शुभ प्यास हो
आत्मा-परमात्मा के मिलन की
आश हो, विश्वास हो, प्राण हो
विश्व के विकट भीषण संकटो के
प्राणी जगत के सब कोलाहलों के
दुख-दर्द के, अश्रुओं के, पाप के
हरनकर्ता, सुख प्रवर्ता, शान्तीवर्ता
हरते स्वं सब सन्ताप हो
निज-आत्मा में लीन नित
प्रभु आराधना में तल्लीन
शुभ चेतना का विस्तार हो
अहिंसा ही विश्व के भीषण
संकटो का एकमात्र उपाय है
प्रभु आपकी आरधाना ही
मम हृदय की निर्मल चाह है।।
सादर नमोस्तु...नमोस्तु...नमोस्तु...
-अभिषेक जैन स-परिवार