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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • भक्ति प्रसून - ज्ञान सागर के मुक्ता को ....

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    ARUN k jain

    ज्ञान सागर के मुक्ता को ....

     

    अग्निदग्ध हृदय, जिनके पगतले शीतलता पाता है,

    जिनके चहुँ ओर, भक्ति सरोवर लहराता है।
    जिनकी दिव्यवाणी से रत्नत्रय खिरते हैं,

    प्रस्तर को जिनके 'कर', वंदनीय करते हैं।

    ऐसे सृजक, वाचस्पति शिल्पी को, मेरा शत वंदन है।

    पूज्य संत शिरोमणि को, मेरा नित वंदन है।।

     

    जिनका अवलम्बन, भवसिंधु पार कराता है,

    जिनकी कृपादृष्टि से, त्याज्य ‘कंचन’ हो जाता है।

    जिनके मुखमंडल पर, 'रवि' 'शशि' की आभा है,

    जिनकी देहयष्टि में, नंदनवन समाया है।

    ऐसे विद्याधर विष्णु को, मेरा शत वंदन है।

    चतुर्विध संघाधिपति को, मेरा नित वंदन है।।

     

    जिनके विचरण से, मरु में मान सरोवर सजते हैं,

    जिनकी पगधूलि पा, बंजर भी, मधुवन बनते हैं।

    जिनके गुण गायन में, शब्द भी लघु बन जाते हैं,

    स्तुति कर कोटि कंठ, अमिय तृप्ति पाते हैं।

    ऐसे कामद, महामानव को, मेरा शत वंदन है।।

    108 विद्यासागर जी को, जग का नित वंदन है।।

     

    जिनके आशीषों से श्री ‘सुधा’ ‘क्षमा सागर' हैं,

    व श्री समता, प्रमाण, उदार, अभय व ध्यान सागर हैं।

    जिन्होंने गत तीस वर्षों में, शताधिक रत्न, भारत को दिये हैं,

    चंद्र-सूर्य सम उदार बन, कोटि जनों को सदाचरण दिये हैं।

    ऐसे भगीरथ, उद्धारक को, मेरा शत वंदन है।

    ‘ज्ञान सागर' के 'मुक्ता’ को मेरा नित वंदन है।।

     

    जिनका नेतृत्व निश्चय ही, स्वर्णिम कल लायेगा।

    तममय कलियुग निशा में, सतयुग प्रभात आयेगा।

    प्राणियों का रुदन, क्रंदन, कराह, विलुप्त हो जायेगा।

    दुखमा-दुखमा नहीं, सुखमा काल आयेगा।

    ऐसे क्रांतिकारी, नवसृजक, पुनरुद्धारक को मेरा नित वंदन है।

    नभ, थल, जलचारी, जड़-चेतन, का प्रति पल वंदन है।

     

    हे प्रभु हमको दे दो शक्ति,

    कर्त्तव्य पथ पर चले चलें।

    पथ के सारे विघ्न दूर कर,

    सदा सफलता वरण करें।

    नहीं चाहते हम ये दौलत,

    मान हमेशा साथ रहे।

    पावें शांति, सफलता, दृढ़ता

    सदा धर्म का ध्यान रहे।

     

    किया सृजन, दी जग को राहें,

    तन मन किया धरा पर अर्पण।

    आज उन्हीं के बदले तुमको,

    शत शत श्रद्धा सुमन समर्पण।।


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    यह रचना 1998 में लिखी गयी थी, उससमय सारे देश वासियों ने इसे सराहा था।आज भी नवीन सी लगती यह कविता पूज्य आचार्य श्री के गुणों के अंशतः पृष्ठ खोलती है।नमोस्तु पूज्य श्री।

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