गुरुवर के पावन चरणों में
गुरुवर के पावन चरणों में, अपना ध्यान लगाता हूँ।
भवतारक ये चरण कमल, मम हृदय वास कराता हूँ।।
कोमल ये नवनीत सरीखे, चट्टानों पर बढ़ते हैं।
गर्म, शुष्क, पथरीले पथ को, पावनतम नित करते हैं।।
मुक्तिपथ वह पथ कहलाता, जिस पर गुरुवर चलते हैं।
पथ भ्रमितों को सपथ बनता, जहाँ पूज्यवर बढ़ते हैं।।
सरिता सम न रुकें कभी जो, नित्य प्रेरणा पाता हूँ।
गुरुवर...
सारी धरती जो पग नापें, कैसे अदभुत पग होंगे?
कभी रुकें न, कभी थकें न, कैसे गतिमय पग होंगे?
जिसको लगें, धन्य हो जीवन, इतने पावन पग होंगे?
कोटि हृदय में सदा विराजें, प्राण प्रिय क्या पग होंगे?
मुक्ति का पर्याय बने जो, उनमें ही रम जाता हूँ।
गुरुवर...
थके हुए जो, गति दे उनको, धर्म ध्वजा फहराई है।
जीवन अन्धकूप था जिनका, पावन ज्योति दिखाई है।।
दसों दिशाओं में जीवन दे, नई चेतना लाई है।
सत्य, अहिंसा की पावन जय, जग ने फिर दुहराई है।।
अमृतधारा बनी चरण रज, पा अमरत्व में पाता हूँ।
गुरुवर के पावन चरणों में, अपना ध्यान लगाता हूँ।
भवतारक ये चरण कमल, मम हृदय वास करता हूँ ।।