108 आचार्य श्री विद्यासागर मुनी महाराज के चरणों में सत-सत वन्दन
सादर नमोस्तु...नमोस्तु...नमोस्तु...गुरुवर -अभिषेक जैन स-परिवार
हो आराधक, हो आत्मसार
हो समयसार, सदगुण अपार
हो योगीश्वर, हो महासन्त
हो परम तपस्वी ज्ञानी-ध्यानी
छनिक संसार मोह से वैराग्य धार
निज आत्म-स्वरूप में लीन सदा
निजानन्द का करते रसपान सदा
स्व-पर प्रकाशक अविरामी, शिवगामी
आरम्भ-परिग्रह का किया त्याग
मुनिपथ धारा करके परिवार त्याग
पावन अहिंसा पथ को अपनाया
करने निज आतम में स्वयं वास
कर त्याग-महाव्रत का पालन
अन्नाहारी, एकासन व्रत के धारी
वस्त्र-आभुषण सबका किया त्याग
पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत को लिया साध
तप-सयंम पथ पर निर्ग्रन्थ ही चलते हो
निज पद-पंकज से ही विहार करते हो
तेरे जैसा पावन सपूत पाके भारत माँ
की माटी शुद्ध हुई, धन्य हुई, पूज्य हुई
प्यारे भारत देश का नाम, सदियों से
सिर्फ त्याग के बल से बड़ पाया है
पूरे विश्व में धर्म का उजियारा
भारत ने ही सदियों से फैलाया है
इसीलिये तुम प्रभु विश्व सन्त
मैं प्रभु तेरा छोटा-सा अनुगामी
भक्तिभाव वश चरणों में वन्दन को हूँ तत्पर
सत्य-अहिंसा-अपरिग्रह पथ का बनूँ गामि ।।
सादर नमोस्तु...नमोस्तु... नमोस्तु...
-अभिषेक जैन स-परिवार