आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी मुनि महाराज
के चरणों में सत-सत वन्दन...नमोस्तु...नमोस्तु...नमोस्तु -अभिषेक जैन
देश की सु-संस्कृति की रक्षा का
बीड़ा अपने कन्धों पर उठाया
गौ माता की सुरक्षा का
दृढ़ संकल्प है मन में बसाया
भारतीय शिक्षा नीतियों में
जो अभी है खामियां
देश हित से भटकती
विध्यार्थी की परेशानियां
एक सुन्दर चिन्तवन
प्रभु आपनें हमको दिया
देश की प्राचीनतम नीतियों
का सदृश बोध है हमको दिया
पाश्चात्य की जो लहर
है देश में यूँ वह रही
पीड़ियों में जहर के
बीज़ कैसें वो रही
अंग्रेजी के जिस जाल में
देश अपना फस गया
पूँजी के जन्जालों में
क्यों देश अपना बँट गया
क्यों किसानों को महज़
दुख-दर्द ही सहने पड़े
सदियों की मेहनतो से
भुक्मरी के दलदल मिलें
कर्ज के जिस बोझ से
देश का अन्नदाता मर रहा
संसार से जो असमय ही
कूंच यूं ही कर रहा
रोता-बिलखता भरा-पूरा
क्यों परिवार छोडकर
फासी लगाने को विवस
दूनियाँ से मुख मोड़कर
पर अँधेरा और न
अब तुम्हें तडपायेगा
तोड़कर सब बंधनों को
सूर्य-सम एक साधक आयेगा
उसकी तप-साधना से
दुख दूर सब हो जायेंगे
देखना फिर एक दिन
गीत खुसियोँ के सभी गाएंगे
बस वहीँ साधक-तपस्वी
तुम्हीं में, है प्रभु मैं देखता
अहिंसा के रथ की सवारी में
आरूण हो दुख-दर्द सारे मेटता
बस उसी रथ का प्रभु
मुझें सारथी कर लीजिये
आपकी सेवा-अर्चना का
बस एक मौका दीजीये ।।
सादर नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु