आचार्य भगवन 108 श्री विद्यासागर जी मुनि महाराज
आचार्य भगवन के चरणों में मेरा परिवार सहित बारम्बार सादर नमोस्तु गुरुवर... -अभिषेक जैन
गुरु शिष्य का सम्बंध कैसा
कौन से शुभभाव है,
हृदय के उद्गार कैसे
भक्त और भगवन मिलन के
निहित क्या-क्या उपाय है
संसार सागर में भटकते
हर प्राणियों को है प्रभु
गुरु-कृपा ही पार करती
ज्यों मझधार में नौका प्रभु
उन गुरु की वन्दना में
संशय नहीं उर में धरो
जोड़ हर दौ हाथ अपने
चरणों में विनती करो
त्याग, सयंम, शील ही
इक शिष्य के शुभ भाव है
गुरु हृदय में स्थान पाने
में निहित सरल उपाय है
संवेदनामयी दीपक हृदय में
गुरु प्रेमपूर्ण वाती बनो
करुणा की लौ को जलाके
शुभ भावना में नित झरो
देखना फिर स्व-हृदय का
कण-कण दीप्तिमय हो जाएगा
गुरु-वन्दना में निज-आत्मा के
मृदु-गीत पल-पल गाएगा ||
सादर नमोस्तु गुरूवर