108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं इस लोक के सभी साधु परमेष्ठियों को मेरा स-परिवार सत-सत नमन-वंदन
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुदेव..
-अभिषेक जैन स-परिवार
हृदय के निर्मल उद्गार तुम हो
इस जगत का सार तुम हो
लीन हो निज आत्मा में
मोक्ष का शाष्वत मार्ग तुम हो
इस जगत की संवेदना हो
भक्ति का आधार तुम हो
सृष्टि की रचना हो उत्तम
सब गुणों का सार तुम हो
आध्यात्म है तुममें बरसता
पुरूषार्थ है तुममें झलकता
ज्ञान को जो तेज सारा
वो सभी तुममें है दिखता
क्या कहूँ अज्ञानवश
मैं दीन और मतिहीन हूँ
बस प्रभु-आराधना में
हृदय से तल्लीन हूँ
बस प्रभु मुझकों बुलालो
चरण में थोड़ी जगह दो
बस इतनी-सी है भावना
बन सकु कुछ आपसा
यहीं निर्मल भावना।।
सादर नमोस्तु
-अभिषेक जैन स-परिवार