जन्मी पर खड़े होकर *आसमा* को छू लिया तुमने... बंधिग्रह में *चरखे* चले दिया तुमने .... *प्रतिभाओं* के नए प्रतिमान गड़ने को हो चिंतित... *हिमालय* को भी बौना बना दिया तुमने।। 🙏🙏🙏🙏🙏 चरण सेवक डॉ विद्या जैन (इटारसी)