जिनके दर्शन को तरसते है यहाँ लाखों नयन
मेरे गुरुदेव नमन-2
जिनकी मुस्कान से खिलते है यहाँ मन के चमन
मेरे गुरुदेव नमन-2
छोड़ घरबार को महावीर का पथ स्वीकारा-2
यूँ कषायों को कषा वेश दिगंबर धारा-2
बिछौना धरती को बना के ओढते हो गगन
मेरे गुरुदेव नमन
देखकर जिनको चित्रकार भी खो जाते है ।
यहाँ जो आते हैं बस इनके ही हो जाते है-2
जिनके तप को डिगा पाते नहीं सर्दी औ तपन
मेरे गुरुदेव नमन
मैं तो गुरुदेव की महिमा का क्या बखान करूँ
शब्द बौने हैं कैसे मैं तेरा गुणगान करूँ-2
बिन तेरे सूने से लगते है अहिंसा के भवन
मेरे गुरुदेव नमन
लेखक : अजय 'अहिंसा
बाखल (म.प्र.)